Monday, December 27, 2010


निजी शैक्षनिक संस्थाओं की गिरफ्त में पुस्तक मेला

पटना: 19 अगस्त,2010
आह मुझे बचाओ-आह मुझे बचाओ!!
ये दर्द किसी लाचार या विवश व्यक्ति की नहीं बल्कि अक्षरों का संग्रह कही जाने वाली पुस्तकों की है. हम बात कर रहे है पटना के ऐतिहासिक गाँधी मैदान की जो इस समय दुल्हन की तरह सज कर तैयार है, मौका है पुस्तक मेले का.
वैसे ये बड़े गौरव की बात है की इस वर्ष हम कुछ कवियों की जन्म शताब्दी मना रहे है. इन कवियों में बहुप्रसिद्ध जनकवि नागार्जुन, अब्दुल फैज और अग्य का नाम सबसे ऊपर आता है. कहने को फैज के नाम से प्रवेश द्वार है, अग्य का नाम प्रसाशनिक भवन पर अंकित है और नागार्जुन का नाम भी मुक्ता आकाश मंच पर है. पर सच माने तो होर्डिंग्स, फ्लैक्स और विभिन्न संस्थाओं की बैनर की भीड़ में इनके नाम पर नजर जाती ही नहीं. आजकल के युवा तो इन कवियों का नाम तक नहीं जानते. ऐसे में इनकी जन्म शताब्दी वर्ष मानाने का ये तरीका महत्वहीन साबित होता है.
कहने को तो ये पुस्तक मेला है पर ये पूरी तरह से निजी शैक्षनिक संस्थाओं की गिरफ्त में है. पुरे पुस्तक मेले में जहाँ भी जाये किसी न किसी शैक्षनिक संस्थाओं की बैनर दिख ही जाती है. इतना ही नहीं पुस्तक मेले के प्रवेश टिकट पर भी ऐसे ही शैक्षनिक संस्था का मुहर है. ऐसे में किताबों की नगरी बाज़ार की तरह प्रतिक होती है.
इस से अलग इस पुस्तक मेले में अनेकों खामियां है जो इसके प्रसाशनिक विभाग पर सवालिया निशान खड़ा करती है. पुस्तक मेला पूरी तरह धुल से सना हुआ है, और ध्वनि प्रदुषण भी चरम पर है. शैक्षनिक संस्थाओं के प्रचार की गूंज में महत्वपूर्ण जानकारियां हमारे कानों तक पहुचती ही नहीं. और किसी भी छोटी-बड़ी घटनाओं के लिए अन्दर कोई प्राथमिक उपचार की व्यवस्था नहीं है.
मेले में बिहारशरीफ से आये एक पुस्तक प्रेमी विकाश दुबे जो पेशे से किसान है का कहना है की ये पुस्तक मेला नहीं बल्कि लूट मेला है. यहाँ सभी किताबों का दाम काफी ज्यादा है जो बाहर कम मूल्यों में उपलब्ध है. एक अन्य पुस्तक प्रेमी पटना के नवीन की माने तो यहाँ विभिन्न सुविधाओं की कमी है और यहाँ नामचीन पुस्तक प्रकाशक नहीं है.
उदघाटन समारोह में माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अंतराष्ट्रिय प्रकाशनों को बुलवाने की बात कह रहे थे जिस से इस पुस्तक मेले की गरिमा और बढे. पर मेले की ऐसी स्थिति में "पयोनीर" और अन्य नामचीन प्रकाशनों को यहाँ बुलवाना मुस्किल लग रहा है. अगर हमें पटना पुस्तक मेले को अंतराष्ट्रिय पहचान दिलानी है तो इन सभी कमियों को दूर करना होगा और मेले पर हावी होता बाजारवाद को रोकना होगा.
नीतीश कुमार
इन्द्रपुरी,पटना
Mob.- 9534711912, 9263633170

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