Thursday, October 13, 2011

विज्ञापनों में शो-पिस बनती लड़कियां


बीते दिनों राष्ट्रीय महिला आयोग ने केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय को पत्र लिखकर कुछ विज्ञापनों पर लगाम कसने की मांग की। ये ऐसे विज्ञापन हैं, जिनमें स्त्री की नकारात्मक छवि पेश की गई है। दरअसल पिछले कुछ समय से ऐसे विज्ञापनों की भरमार होती जा रही है जिनमें महिलाओं को एक उत्पाद की तरह दिखाया जाता है। कुछ इस तरह जैसे वह भोग की सामान हों। आज एक क्रीम से लेकर सिम कार्ड तक के विज्ञापनों में स्त्री का यही रूप देखने को मिलता है। सिमकार्ड के एक विज्ञापन में एक लड़का फोन पर एक- एक करके दो लड़कियों को अपनी टांग टूटने की झूठी कहानी बताता है और जब उसका दोस्त उससे रुकने के लिए कहता है तो वह जवाब में कहता है कि 'जब दो पैसे में दो-दो पट रही हैं तो क्या प्रॉब्लम है।'

एक अन्य विज्ञापन में खेल के मैदान में एक खिलाड़ी अपने साथी को अपने मोबाइल पर अपनी बहुत सारी गर्लफ्रेंड्स की पिक्चर्स एक-एक करके बड़ी शान से दिखाता है, मानो उसने कोई बहुत बड़ा शाबाशी वाला काम किया हो। उसका साथी उससे बड़े आश्चर्य से पूछता है कि यार तू इन सभी को एक साथ अजस्ट कैसे करता है, और इस सवाल पर उसका सीना शान से और चौड़ा हो जाता है। यानी कि लड़कियों का अस्तित्व सिर्फ दो पैसे में पटाने से लेकर अजस्ट करने तक ही रह गया है। एक तरफ तो कहा जा रहा है कि लड़कियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। उनके सशक्त होने के दावे किए जाते हैं पर विज्ञापनों में कामयाब स्त्री कम क्यों दिखाई देती है?

दरअसल विज्ञापन बनाने वाले भी एक औसत पुरुष की आंख से ही समाज को देखते हैं। और आज का पुरुष समाज अब भी मानसिक स्तर पर स्त्री को बराबरी का दर्जा नहीं दे पाया है। वह औरत को मनोरंजन की ही वस्तु समझता है। विज्ञापनों में यही मानसिकता झलकती है। एक विज्ञापन में एक लड़की का महज खूबसूरत होना ही उसकी कामयाबी का कारण बन गया। एक और विज्ञापन में लड़की ने फेयरनेस क्रीम लगाई तो वह स्टार बन गई। वहीं जब लड़के ने वही क्रीम लगा ली तो उसका दोस्त बोलता है कि 'मर्द होकर लड़कियों वाली फेयरनेस क्रीम? यानी लड़कियां एक उत्पाद के साथ- साथ 'मर्दों' के आगे इतनी छोटी भी हैं कि गलती से भी उनकी क्रीम लगाना इन 'मर्दों' के लिए मुंह छुपाने का कारण बन जाता है। एक रिफायंड ऑइल के लगभग सभी विज्ञापनों में महिलाओं को एक हाउस वाइफ के ही रूप में ही दिखाया जाता है, जो अपने पति की बढ़ती उम्र की फिक्र करती है, और उसके लिए वह ऑइल लाती है ताकि उसकी सेहत अच्छी रहे। इस ऑइल के किसी भी विज्ञापन में यह नहीं दिखाया जाता कि पति अपनी पत्नी के लिए वह ऑयल लाया हो, मानो घर में सारा दिन काम करते रहने वाली महिला को खराब सेहत का तो कोई खतरा ही नहीं है।

मगर यहां से यह विज्ञापन पैतृक समाज की इस सोच का एक और पहलू सामने लाते हैं, वह यह कि एक ओर तो अधिकतर युवा गर्लफ्रेंड के नाम पर खूबसूरत वेस्टर्न कपड़े पहनने वाला उत्पाद अपने साथ चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर पत्नी के नाम पर एक हाउसवाइफ को ही प्राथमिकता देते हैं जो अपना करियर छोड़ कर उनके साथ अपनी जिंदगी गुजार दे। दरअसल दिक्कत समाज के एक वर्ग की सोच की है जो महिलाओं को एक दायरे से बाहर नहीं देखना चाहता है और इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इस वर्ग में कुछ महिलाएं भी शामिल हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग भले ही पहल करके ऐसे विज्ञापनों पर रोक लगवा दे लेकिन इससे समाज की उस सोच पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा जो इसके लिए जिम्मेदार है। इस समस्या से निपटने के लिए सबसे जरूरी इस सोच को खत्म करना है जिसके लिए बहुत गंभीर प्रयासों की जरूरत है। और यह प्रयास महिला आयोग जैसी कोई एक संस्था नहीं कर सकती है बल्कि इसे सारे समाज को मिलकर करना होगा।

Sunday, May 22, 2011

यह संविधान इतना दोगला क्यों हैं?

: जुल्म जारी रखो.. जनता ने खामोश रहना सीख लिया है : राहुल के भट्टा परसौल पहुंचने से एक दिन पहले प्रसारित वीडियो (टीवी रिपोर्टरों के मुताबिक यह गांव से काफी दूर से लिए गए थे) में गांव जलता हुआ दिख रहा था। आग की लपटें दिख रहीं थी। जली हुई गाड़ियां दिख रहीं थी। जली हुई बाइकें दिख रही थी। जलते हुए खेत दिख रहे थे। जलते हुए भूसे और उपलों के बटोरे दिख रहे थे। मतलब..इसमें कोई शक नहीं कि आग दिख रही थी। आग लगी थी..चारो और आग दिख रही थी।

राहुल गांधी बाइक से भट्टा परसौल पहुंचे और पीछे-पीछे मीडिया भी पहुंचा। पहले यहां धारा 144 लगी हुई थी और मीडिया वालों को गांव में जाने से पुलिस ने रोक दिया था। (जबकि धारा 144 के तहक आने-जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं होता, यह सिर्फ लोगों को इकट्ठा होने से रोकती है।) मीडिया पहुंचा तो चीजें सामने आनी शुरु हुई। जी न्यूज, एनडीटीवी, स्टार न्यूज और बाकी सभी चैनलों के रिपोर्टरों ने गांव वालों को दिखाया, (मैंने यह पटना में बैठकर टीवी पर देखा)।

बुरी तरह पिटे हुए बुजुर्ग टीवी पर दिखे। चेहरे पर घाव के निशान लिए महिलाएं टीवी पर दिखी। सिसकते हुए बच्चे टीवी पर दिखे। अपनी आबरू लुटने की दुहाई देती हुई महिलाएं भी टीवी पर दिखी। पुलिस द्वारा लोगों (खासकर पुरुषों और युवाओं) को पीटे जाने की बर्बर दासतान सुनाते हुए बुजुर्ग टीवी पर दिखे। रोतो हुए बुजुर्ग दिखे, बिलखते हुए बच्चे दिखे, सिसिकती हुए माएं दिखी, तड़पती हुए बहनें दिखी।

राहुल ने यह देखा। देश ने यह देखा। मायावती ने भी जरूर देखा होगा और अफसरों ने भी देखा होगा। हां..सबने देखा। राहुल राजनीति से हैं इसलिए लोगों ने राहुल के वहां पहुंचने पर इसे देखने का नजरिया बदल लिया। अब जिसने भी देखा इसे राजनीतिक चश्मे से देखा। बीजेपी ने देखा और राहुल की आलोचना की। मायावती ने देखा राहुल की आलोचना की। कांग्रेसियों ने देखा राहुल के गुणगान गाए।

अब गांव वालों के जख्मों पर, बुझी हुई आंखों पर, लुटे हुए घरों पर, बिलखती हुए माओं पर, तड़पती हुई पत्नियों पर और भट्टा की राख में दम तोड़ रही यहां के बच्चों के सपनों को राजनीति ने ढक दिया। पूरा प्रकरण राहुल की राजनीतिक जीत या मायावती की हार में बदल गया। अब मुद्दा राजनीतिक हो गया। राहुल गिरफ्तार हुए, रिहा हुए और दिल्ली पहुंचे। गांव के पीड़ितों को लेकर प्रधानमंत्री के पास पहुंचे। प्रधानमंत्री ने भी ग्रामीणों की दास्तान सुनीं। प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद राहुल ने मीडिया के सामने कहा कि भट्टा परसौल में ज्यादती हुई, मानवाधिकारों का हनन हुआ, हत्याएं हुईं, बलात्कार हुए।

देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के 'युवराज' के मुंह से यह शब्द निकले हर अखबार की सुर्खी बने। अखबारों ने कहा भट्टा में ज्यादती हुई। टीवी ने कहा भट्टा में ज्यादती हुई। राहुल ने कहा तो सबने कहा भट्टा में ज्यादती हुई। सबने देखा भट्टा में ज्यादती हुई। सबने कह भी दिया भट्टा परसौल में ज्यादती हुई। माया ने सुन लिया। माया के अफसरों ने सुन लिया।

अगले ही दिन माया के अफसरों ने प्रेस कांफ्रेंस की। डरते हुए प्रेस कांफ्रेंस की। राहुल के हर आरोप को निराधार बताया। बयान को निराधार बताया। बुजुर्गों को पीटे जाने के निराधार बताया, महिलाओं से ज्यादती को निराधार बताया। यानि राहुल ने जो कुछ कहा उसे निराधार बताया, प्रधानमंत्री ने जो सुना उसे निराधार बताया। हमने जो टीवी पर देखा उसे निराधार बताया। कहा कि राख के नमूने यह जांचने के लिए लिए गए कि कहीं उसमें कोई विस्फोटक तो नहीं है।

इससे पहले माया ने अपने पुलिस अफसरों का गुणगान किया। भट्टा परसौल की घटना पर हो रही राजनीति की आलोचना की। अपनी सरकार की तारीफ में कसीदे पढ़े। हमने सुने। आपने सुने। हम सबने सुने। राहुल बोले हमने सुना। माया बोली हमने सुना। माया के अफसर बोले हमने सुना। सब बोले हमने सुना। सब बोल चुके और अब हम खामोश। हमारी खामोशी ने बता दिया कि जिसने जो कहा सही है। राहुल ने जो कहा वो भी सही। टीवी पर जो दिखा (इसमें कोई शक नहीं हो सकता क्योंकि ये हमने सुना नहीं हमने देखा) वो भी सही। मायावती ने जो कहा वो भी सही। अफसरों ने जो कहा वो भी सही। हमने सबको सही माना और हम खामोश।

एक और बात, मुझे याद है कि एक बार मुझे समझाते हुए एक बुजुर्ग ने कहा था कि यदि तुम कहीं जुल्म होते हुए देखो तो अगर तुम्हारे बस में हो तो उसे रोक दो। कोई जालिम यदि किसी मजलूम पर जुल्म कर रहा है तो उसे रोक दो। अगर रोकने लायक ताकत तुममें न हो तो आवाज बुलंद कर यह कहो कि जुल्म हो रहा है, हो सकता है कि कोई ऐसा बंदा सुन ले जो उस जालिम को रोक सके। यदि तुम्हें इस बात का डर हो कि जालिम तुम्हारी आवाज सुन कर तुम पर भी जुल्म करेगा तो बुलंद आवाज में न सही लेकिन अपने दिल में तो कहो कि जुल्म हो रहा है। और जब तुम अपने दिल में कहोगे कि जुल्म हो रहा है तो तुम्हें अहसास होगा कि तुम कितने बेबस हो, एक जालिम को नहीं रोक सकते, जुल्म को नहीं रोक सकते, जुल्म के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते। यह बेबसी का अहसास तुम्हें जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए ताकतवर बनने की प्रेरणा देगा।

अब कुछ सवाल-

  1. क्या किसी ने यह पूछा कि जो दो गांव वाले मारे गए उनका कोई आपराधिक रिकार्ड था क्या?

  2. क्या ऐसा कोई कानून होता है जो पुलिस को घरों में आग लगाने की इजाजत देता है। या घर में ही क्यों किसी भी चीज में आग लगाने की इजाजत देता है?

  3. क्या पुलिस ने जो भट्टा परसौल में किया वो दहशत फैलाने की नियत से नहीं था? क्या पुलिस को अधिकार है कि वो बदले की भावना से कार्रवाई करे ?

  4. एक बचकाना सवाल- क्या विस्फोटकों में आग लगाई जाती है? पुलिस का कहना है कि भट्टा परसौल में ग्रामीणों ने घरों में विस्फोटक रख रखे थे? ये कहां से आए और ग्रामीणों को इनकी क्या जरूरत थी?

एक और सवाल-

हम इतने बेबस क्यों हैं। हम जुल्म देखते हैं खामोश रहते हैं। जुल्म की दास्तान सुनते हैं खामोश रहते हैं। दहशतगर्दी देखते हैं खामोश रहते हैं। दूसरे के घरों को जलता हुए देखकर हमारे दिल से धुआं क्यों नहीं उठता। हम हर बात में राजनीति क्यों देखते हैं। हम राहुल के बयानों में राजनीति दिख जाती है लेकिन जो भुस को बटोरे पुलिस ने जलाए उन्हें बनाने में लगी किसानों की मेहनत क्यों नहीं दिखती? जो गाय-भैसों के गोबर के उपले पुलिस ने जलाए उनमें लगी गांव की मां-बेटियों की मेहनत क्यों नहीं दिखती? चलो मान लिया कि पुलिस ने ग्रामीणों की जान नहीं ली...लेकिन क्या जो आगजनी हुई वो संवैधानिक है? जो नुकसान हुआ वो संवैधानिक है?

और अंतिम बात-

जो संविधान पुलिस और प्रशासन को असीमित ताकत देता है। जो सरकारों और नौकरशाहों को खास सुविधाएं देता है वो आम जनता को सम्मान से जीने का अधीकार भी तो देता है। सरकार और अफसरों को तो ताकत, दौलत, शौहरत और बहुत कुछ मिल जाता है...लेकिन बेचारी जनता को सम्मान क्यों नहीं मिल पाता। यह संविधान इतना दोगला क्यों हैं?

क्या इतने पुलिस बल का मुकाबला देश का कोई भी गांव कर सकता है?

ये बुजुर्ग जख्म ही तो दिखा रहा है। या आपको कुछ और दिख रहा है?

ये आग सबने देखी। क्या पुलिस के पास गांव में आग लगाने का कोई विशेषाधिकार है?

ये महिलाएं राहुल से क्या कह रही हैं। क्या ये जो कह रही हैं उसपर यकीन न करने की कोई वजह है?

राहुल की राजनीति को भी देखों लेकिन जनता पर अत्याचार को नजरअंदाज मत करो।


नीतीश कुमार
पटना
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Wednesday, May 11, 2011

बाल श्रम, मज़बूरी या मजदूरी

आज 21 वीं शताब्दी में बाल श्रम जैसा शब्द कर्ण अप्रिय लगता है. लेकिन हमारे समाज का ये एक घिनौना सच है. सरकार की विभिन्न योजनाओं के बावजूद इस से निजात पाना एक चुनौती बन गया है.

पेश है नीतीश कुमार की विशेष रिपोर्ट.

Tuesday, May 10, 2011

प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 6 रुपये 42 पैसे का खर्च



बिहार सरकार प्रत्येक बिहार वासी पर प्रत्येक दिन 6 रुपये 42 पैसे खर्च करती है। राज्य सरकार इसी पैसे से शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और खाद्यान्न आदि का प्रबंध करती है। यह आंकड़ा पूरी तरह सरकारी है। वर्ष 2011 की जनगणना के बाद यह तथ्य स्पष्ट हुआ है कि बिहार में प्रति व्यक्ति औसत आय 11 हजार रुपये की सीमा को पार कर चुकी है। इस लिहाज से एक बिहारी की रोजाना आय केवल 30 रुपये है। अर्थार्त प्रत्येक बिहारी नागरिक की अपनी आय केवल 23 रुपये 58 पैसे हैं।

अब यदि सरकारी खर्च की बात करें तो यह महज संयोग नहीं है कि सरकार सबसे अधिक खर्च शिक्षा उपलब्ध कराने के लिये करती है। मसलन बिहार सरकार ने मानव संसाधन विकास विभाग के मद में वर्ष 2011-12 के दौरान कुल 24000 करोड़ रुपये के अपने योजना आकार में से 3014 करोड़ रु[पये खर्च करने की योजना बनाई है। वर्तमान जनसंख्या से भाग देने पर जो राशि प्राप्त होती है, उसके अनुसार बिहार सरकार प्रति माह 24 रुपये 20 पैसे शिक्षा के मद में खर्च करती है। इसी प्रकार 4 रुपये 35 पैसे की सहायता राज्य सरकार सूबे के एक नागरिक के स्वास्थ्य का ख्याल रखती है। जबकि पीने हेतु पेयजल और खेतों में सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराने के लिये राज्य सरकार प्रति मात 24 रुपये 17 पैसे खर्च करती है।

खेती के सहारे बिहार को विकसित बनाने के लिय राज्य सरकार की दृढता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है राज्य सरकार प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से प्रतिमाह 9 रुपये 75 पैसे खर्च करती है। अन्य विभागों की बात करें तो सूबे के अल्पसंख्यकों के लिये सरकार का हृदय अत्यंत ही विशाल है। ऐसा इसलिये कि सूबे के प्रत्येक अल्पसंख्यक नागरिक पर राज्य सरकार प्रतिमाह 4 रुपये 83 पैसे खर्च करती है। बताते चलें कि सूबे में अल्पसंख्यकों की आबादी कुल आबादी का 15 प्रतिशत (पूर्व में यह 16 फ़ीसदी हुआ करता था) राज्य सरकार ने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के लिये कुल 90 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

सामाजिक दृष्टिकोण से राज्य सरकार सबसे अधिक राज्य के अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर मेहरबान है। इसकी वजह यह है कि इन समुदायों के प्रत्येक व्यक्ति के लिये राज्य सरकार ने प्रत्येक माह 24 रुपये 17 पैसे खर्च करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। हालांकि राज्य की आबादी में 60 फ़ीसदी हिस्सेदारी रखने वाले पिछड़ों और अति पिछड़ों के लिये सरकार ने प्रति माह केवल 92 ही खर्च करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

बहरहाल, यह उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा स्थापना एवं अन्य पूर्व निर्धारित मदों ( जिनका संबंध आम जनता से नहीं होता है) के तहत कुल राशि का 36-37 फ़ीसदी हिस्सा खर्च कर देती है। इस प्रकार प्रति व्यक्ति होने वाले सरकारी खर्च का अनुमान इसी मात्र से लगाया जा सकता है।
एक बिहारी पर माहवार सरकारी खर्च

विभाग का नाम
खर्च

मानव संसाधन विकास विभाग
24.20 रुपये

स्वास्थ्य विभाग
04.35 रुपये

उद्योग विभाग
00.33 रुपये

जल संसाधन विभाग
24.17 रुपये

कृषि विभाग
09.75 रुपये

अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण
24.17 रुपये

पिछड़ा/अति पिछड़ा वर्ग
00.92 रुपये

अल्पसंख्यक कल्याण विभाग
04.83 रुपये



श्रोत – बिहार सरकार द्वारा जारी बजट और वर्ष 2011 की जनगणना रिपोर्ट के आधार पर






Nitish Kumar



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Sunday, April 3, 2011


28 साल बाद भारत ने दोहराया इतिहास


28 वर्षों का लंबा इंतजार कल खत्म हो गया। भारतीय क्रिकेट टीम ने महेंद्र सिंह धोनी के नेतृत्व में श्रीलंका को 6 विकेट से हराकर सवा अरब भारतीयों को खुशी का ऐसा लम्हा दिया, जिसमें पूरा देश सराबोर हो उठा। मैच के दौरान ऐसे अनेक पल आये जब नाटकीय स्थिति बनी रही। सबसे पहले टॉस को लेकर एक बार अनिश्चितता की स्थिति बन गई थी क्योंकि पहली बार जब सिक्का उछाला गया तो मैच रेफ़री सुन नहीं पाए कि कुमार संगकारा ने क्या कहा. उसके बाद दोबारा टॉस करना पड़ा और श्रीलंकाई कप्तान कुमार संगकारा ने टॉस जीतने के बाद पहले बल्लेबाज़ी का फ़ैसला किया.

पहले बल्लेबाज़ी करते हुए श्रीलंका ने छह विकेट के नुक़सान पर 274 रनों का चुनौतीपूर्ण स्कोर खड़ा किया और इसमें महेला जयवर्द्धने के शतक की अहम भूमिका रही.

जवाब में भारत की जीत में कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और गौतम गंभीर ने एक अहम भूमिका निभाई. धोनी ने 79 गेंदों में 91 रन बनाकर नॉट आउट रहे जबकि गंभीर 97 रन बनाकर वह तिसारा परेरा की गेंद पर बोल्ड हुए. शुरुआती झटकों के बाद गौतम गंभीर और विराट कोहली मिलकर पारी को संभाल रहे थे इस साझेदारी की बदौलत भारत ने अपने 100 रन भी पूरे कर लिए थे.

जैसे ही भारत ने श्रीलंका पर जीत हासिल किया, पूरे देश के साथ-साथ बिहार भी झुम उठा। राजधानी पटना में तो पूरा आकाश रंग-बिरंगी आतिशबाजी का गवाह बना। लोग पूरे उत्साह के साथ भारत माता की जय का नारा लगाते दिखे। भारत के विश्व चैम्पियन बनने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी सहित अनेक नेताओं ने शुभकामना दी। उधर राजधानी पटना में भी कई स्थानों पर लोगों ने सामूहिक रुप से मैच का आनंद लिया।

भारतीय क्रिकेट टीम के विश्व चैंपियन बनते ही खिलाड़ियों पर पैसे और पुरस्कारों की बारिश होने लगी है। इसकी शुरुआत सबसे पहले बीसीसीआई ने टीम के हर खिलाड़ी को एक-एक करोड़ रुपये देने की घोषणा के साथ की। भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान ही टीम के सभी 15 सदस्यों को एक-एक करोड़ रुपये, कोच गैरी कर्स्टन और उनके सहयोगी स्टाफ में से प्रत्येक को 50 लाख रुपये देने की घोषणा की। बीसीसीआई ने इसके साथ ही चयन समिति के प्रत्येक सदस्य को 25 लाख रुपये देने का भी ऐलान किया। इसके अलावा टीम इंडिया को विश्व विजेता बनने पर चमचमाती ट्रोफी के अलावा साढ़े 32 लाख डॉलर की भारी भरकम इनामी राशि भी मिली, जिससे टीम का हर खिलाड़ी बीसीसीआई की घोषणा से पहले ही एक-एक करोड़ का मालिक बन गया था। दिल्ली सरकार टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को दो करोड़ रुपये और दिल्ली के खिलाड़ी-गौतम गंभीर, वीरेंद्र सहवाग, विराट कोहली और आशीष नेहरा को एक-एक करोड़ रुपये बतौर इनाम देगी। गुजरात सरकार ने अपने सूबे के खिलाड़ियों यूसुफ पठान और मुनफ पटेल को सर्वोच्च खेल पुरस्कार एकलव्य अवॉर्ड देने की घोषणा की है।


इस मौके पर मेरी आखें नाम थी. ख़ुशी इतनी की मुँह से कुछ बयां भी नहीं कर सकता. पर सर तो गर्व से ऊँचा था. आज उन 11 खिलाड़िओं ने वो कर दिखाया जो 28 वर्षों से हर भारतबासियों का सपना था. पहले जब घर में पापा कपिल देव के ज़माने की क्रिकेट की बात करते थे और कहते थे की उसने भारत को विश्व कप दिलाई तो दिल में एक आस जगती थी की काश मै भी उस मैच का गवाह होता. आज जब भारत ने ये मुकाम हासिल किया तो दिल भर गया पर हर लम्हा दिल में बसा है. और ये है कभी न भूलने वाला पल. 02 अप्रैल 2011..

जय हिंद


नीतीश कुमार.

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Sunday, March 27, 2011


खेल होमोसेक्शुअलटी का


मुंबई।। फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस मामले में नए एक्टर के आरोप से बदलते बॉलिवुड का असली चेहरा सामने आ गया है। होमोसेक्शुअलटी पर बनी एक फिल्म में काम कर चुके युवराज पराशर ने ' माई ब्रदर निखिल ' , ' बस इक पल ' जैसी संवेदनशील फिल्में बना चुके डायरेक्टर ओनीर पर यौन शोषण का आरोप लगाया है। हालांकि , ओनीर का कहना है कि मैं गे हूं यह बात कभी छिपाई नहीं और जो कुछ भी हुआ, वो आपसी सहमति से हुआ है। उन्होंने युवराज के खिलाफ मानहानि का मुकदमा करने की धमकी दी है। आगरा के रहने वाले 28 वर्षीय युवराज फिलहाल फिल्म इंडस्ट्री में पांव जमाने की कोशिश कर रहे हैं। वह पिछले साल जीनत अमान के साथ होमोसेक्शुअलटी पर एक फिल्म में काम कर चुके हैं, जो फ्लॉप रही थी। युवराज का कहना है, ' मैंने काम पाने के लिए मधुर भंडारकर और ओनीर से मेरी फिल्म देखने की गुजारिश की थी। भंडारकर ने बिजी शेड्यूल का हवाला देकर फिल्म देखने से मना कर दिया लेकिन ओनीर तैयार हो गए। उन्होंने मंगलवार को वर्सोवा स्थित अपने घर पर साथ फिल्म देखने के लिए बुलाया। ' ऐक्टर ने कहा , ' मैं रात पौने ग्यारह बजे ओनीर के घर पहुंचा और हम लिविंग रूम में डीवीडी पर फिल्म देखने लगे। इस दौरान डायरेक्टर ने मुझे 6-7 पैग शराब पिलाई। फिल्म के बीच में ओनीर ने कहा कि चलो बची फिल्म बेडरूम में देखेंगे। ' युवराज का आरोप है कि वहां डायरेक्टर ने उनके साथ बदसलूकी की। दूसरी तरफ ओनीर का कहना है कि युवराज शारीरिक रूप से मेरे से मजबूत हैं और ऐसे में उनके साथ मैं जबरदस्ती नहीं कर सकता। ओनीर का कहना है कि जो कुछ भी हुआ आपसी सहमति से हुआ लेकिन अब सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए युवराज यह सब कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह युवराज पर मानहानि का दावा करने जा रहे हैं।


नीतीश कुमार


Mob.-9534711912


था कोई अजनबी. दिल जो हमारा ले गया, था कोई अजनबी. एक सहारा सा दे गया था कोई अजनबी. रुख्शत किया हमें उसने इतनी बेरुखी से, और सिकवा दे गया था कोई अजनबी. जिंदगी है छोटी और रास्ते है लम्बे, तनहा जो छोड़ गया,था कोई अजनबी. गम नहीं है ज़ख्मों का,जो अपनों से मिला, जो दिल तोड़ के गया, था कोई अजनबी. आखें जो ढूंढ़ती है, वो तस्वीर नहीं कोई, जो ख्वाबों में छा गया. था कोई अजनबी.. नीतीश कूमार Mob.-9534711912

Friday, March 11, 2011


गोरखनाथ में गोरखधंधा

पटना।। पैरंट्स सावधान ! पटना में साइबर कैफों में छापे के दौरान कॉन्डम मिले और करीब 40 जोड़ों को आपत्तिजनक हालत में पाया गया। एक साइबर कैफे में तो क्यूबिकल्स में बेड तक लगे हुए थे। पुलिस ने बताया कि इनमें से ज्यादातर कपल्स अच्छे परिवार से ताल्लुक रखने वाले 16 से 18 साल के टीनएजर्स हैं। एसपी ( सिटी ) शिवदीप लांडे ने बताया कि गांधी मैदान, कदमकुआं, पीरबहोर, कोतवाली और बुद्धा कॉलोनी के 12-13 साइबर कैफों में छापे के दौरान हमने जो देखा वह चौंकाने वाला था। उन्होंने बताया कि रेड पड़ते ही टीनएजर कपल्स ने भागने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। सबको थाने ले जाया गया लेकिन लड़कियों को वॉर्निंग देकर छोड़ दिया गया। एसपी सिटी ने कहा कि उनकी हिरासत से परिवारों की प्रतिष्ठा को धक्का लगता, इसलिए यह कदम उठाया गया। लड़कों को हिरासत में लेने के बाद उनके पैरंट्स को बुलाया गया और पर्सनल बॉन्ड भरवाने के बाद छोड़ गया। पुलिस ने कहा कि जिन साइबर कैफों से कॉन्डम मिले हैं, उनके मालिकों को गिरफ्तार किया जाएगा। दरअसल, पुलिस को लंबे समय से शिकायतें मिल रही थीं कि साइबर कैफों की आड़ में कुछ और ही खेल चल रहा है। इसके मद्देनजर कई थाना क्षेत्रों की पुलिस ने विशेष जांच अभियान छेड़ा। बोरिंग रोड के गोरखनाथ काम्प्लेक्स में लगभग एक घंटा तक चली कार्रवाई के दौरान लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई। चार कैफों में आपत्तिजनक सामान भी मिला है। सात लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है। कई कैफों में सिंगल एंट्री पर 10 और कपल के साथ 20 रुपये की रेट लिस्ट भी कहानी बयां कर रही थी। क्यूबिक में कंप्यूटर के साथ दराज में आपत्तिजनक कॉन्डम रखने वाले साइबर कैफों ने केबिन के प्रति घंटा रेट काफी ऊंचा रखा है।

आपको ये भी याद दिलाते चले की एक दिन पहले ही पटना पुलिस ने राजा बाज़ार स्थित चौरसिया रेस्तरां में छापा मारकर काफी लड़के लड़कियों को पकड़ा था.
और तब भी काफी अफरातफरी का माहौल था....

पर आज ऐसे जगहों पर छापा मारना तो सही है पर इस से एक सवाल भी पैदा होता है....
आज जहा हमारे संबिधान में LIVE IN RELATIONSHIP की बात हो रही है वही ऐसे जगहों पर छापा मरना कितना सही है?
ये सवाल मै साइबर कैफे को लेकर नहीं बल्कि रेस्तरां में मारे गये छापे को लेकर उठा रहा हूँ.
सोचने वाली बात ये है की अगर लड़का लड़की राज़ी है तो किसी को फिर क्या दिक्कत है??
और LIVE IN RELATIONSHIP के अंतर्गत हमारी संबिधान भी तो यही कहती है..

आप इस पर अपनी राय जरुर दे.

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Nitish kumar

Mob.- 9534711912

Tuesday, March 8, 2011

TUM MERI JAAN HO

Meri Rooh Nikalne Wali Hogi

Meri Sans Bikharne Wali Hogi
Phir Daman Zindgi Ka Chute Ga

Dhaga Sans Ka Bhi Tute Ga
Phir Wapis Hum Na Aayenge

Phir Hum Se Koi Na Roothe Ga
Phir Ankhon Me Noor Na Hoga

Phir Dil Gham Se Choor Na Hoga
Us Pal Tum Hum Ko Thamo Ge

Humay Dost Apna Mano Ge
Phir Hum Na Kuch B Bolien Ge

Ankhen Bhi Na Kholien Ge
Us Pal Tum Ro Do Ge

{BAS PHIR TUM HUM KO KHO DO GAY}

Tum Aksr Sochty Hon Gy

Hum Tumhein Yaad Nhi Krty
Tumhein Hum Bhool Jate Hein

Mgar Ye Bhool Tumhari Hy
Asal Mein Baat Kuch Yun Hy

K Jab Tum Yaad Aate Ho
To Kuch B Yaad Nahi Rehta

Or Tumhari Yaad Mein Kho Kr
Hum Batana Bhool Jate Hein

K Tum Kitna Yaad Aate Ho..!

Dedicated To My LOVE "SweetU"

Thursday, January 6, 2011


पापी पेट के खातिर


चिराग जलाने की कोशिश,

घर हमने जलते देखा है,

पेट पालने की खातिर,

कोई पेट मैं पलते देखा है,


भूखी माँए रोते बच्चे,

तन नंगा और मन नंगा,

एक दिन के चावल को ही,

हो जाता है बदन नंगा,

इस युग मैं हर मोड़ पे हमने,

सीता को हरते देखा है,


खुश दिख कर यहाँ करने पड़ते,

बदन के सौदे रातों मैं,

बदन के लालची भेडिये,

रहते सदा ही घातों मैं,

यहाँ द्रोपदी को चीर हरण,

खुद अपना करते देखा है,


सोने वाले सो नही पते,

रात यहाँ सो जाती है,

जग की जन्म देनी माँ,

खुद गर्त मैं खो जाती है,

पेट की खातिर खुद ही हमने,


खुद को छलते देखा है,

चिराग जलाने की कोशिश,

घर हमने जलते देखा है,

पेट पालने की खातिर,

कोई पेट मैं पलते देखा है,


नीतीश कुमार

Mob.- 9534711912

Saturday, January 1, 2011



हुनर के धनि कलाकार को है मंच की तलाश

जिन्दगी एक अभिलाषा है, क्या गजब इसकी परिभाषा है.
संवर गई तो दुल्हन और बिखर गई तो तमाशा है.

प्रसिद्ध कवि दुष्यंत की ये पंक्तियाँ हर किसी की जिन्दगी पर बिलकुल सटिक बैठता है. कहते है जब किसी इंसान में हुनर हो तो मंजिल खुद उसका कदम चूमती है. पर हमारे बीच एक ऐसे व्यक्ति भी है जिनमे हुनर तो कूट-कूट कर भरा हुआ है पर अपनी पहचान बनाने के लिए वो दर दर भटक रहा है. ये है नवादा जिले के रामनगर निवासी विकास विश्वकर्मा जो महज 20 साल की उम्र में बिना कोई प्रशिक्षण लिए हर योगाभ्यास कर लेता है.
बाबा रामदेव को अपना आदर्श मानने वाला विकास हर व्यक्ति तक योग शिक्षा पहुचना चाहता है. गौरतलब हो की योग के प्रति रुझान के कारन वह शरीर को रबड़ की तरह मोड़ लेता है. इतना ही नहीं वह अपने ज्ञानेन्द्रियों को भी वश में कर लेता है जिससे शारीर को कुर्सीनुमा बनाकर बिना टेबुल के सहारे ही भोजन कर सकता है. ज्ञानेन्द्रियों पर वश ऐसा की वह अपने बाल को आगे पीछे, पेट को फुटबाल नुमा और कान को जिस तरह चाहे घुमा सकता है. हाथ पीछे कर के भोजन करना और लोगों को पीछे से प्रणाम करके वह सभी को आश्चर्य में डाल देता है. कला का धनि विकास अनेक कलाकार की आवाज़ भी निकालता है. विकास की आवाज़ में मिथुन, अजीत, जगदीप, सत्रुघ्न सिन्हा, एहशान कुरैशी के आलावा विविध भारती के प्रसिद्ध एनाउंसर अमीन शयानी भी शामिल है.
इतना हुनर होते हुए के वावजूद भी विकास को तलाश है एक ऐसे मंच की जो उसे पहचान दिला सके. अपने मार्ग में वह गरीबी को सबसे बड़ा रोड़ा मानता है. विकाश कहता है की ये सब कलाबाजियां उसमे ईश्वरीय देन है, लेकिन प्रशिक्षण की अभाव में उसे इन कलाओं की बारीकियों और इससे होने वाले लाभ के बारे में उसे नहीं पता है.
विकास के पिता वासुदेव विश्वकर्मा जो पेशे से ड्राईवर है बताते है की विकास को बचपन से ही योग के प्रति गहरा रुझान रहा है पर आर्थिक स्थिति दयनीय रहने के कारन ही उसका विकाश बाधित है. उन्होंने जिला प्रशासन से उमीद जताते हुए सहयोग की मांग भी की थी पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ. वो चाहते है की विकास अपने प्रदेश और राज्य का नाम रौशन करे जिसके लिए वो कला एवं सांस्कृतिक विभाग से सहयोग की उमीद जताते है.विलक्षण कलात्मक प्रतिभा का धनि विकास की उड़ान ऊँची हो सकती है, बशर्ते आर्थिक संसाधनों की कमी दूर हो.

नितीश कुमार
इन्द्रपुरी, पटना

Mob.- 9534711912