Thursday, January 6, 2011


पापी पेट के खातिर


चिराग जलाने की कोशिश,

घर हमने जलते देखा है,

पेट पालने की खातिर,

कोई पेट मैं पलते देखा है,


भूखी माँए रोते बच्चे,

तन नंगा और मन नंगा,

एक दिन के चावल को ही,

हो जाता है बदन नंगा,

इस युग मैं हर मोड़ पे हमने,

सीता को हरते देखा है,


खुश दिख कर यहाँ करने पड़ते,

बदन के सौदे रातों मैं,

बदन के लालची भेडिये,

रहते सदा ही घातों मैं,

यहाँ द्रोपदी को चीर हरण,

खुद अपना करते देखा है,


सोने वाले सो नही पते,

रात यहाँ सो जाती है,

जग की जन्म देनी माँ,

खुद गर्त मैं खो जाती है,

पेट की खातिर खुद ही हमने,


खुद को छलते देखा है,

चिराग जलाने की कोशिश,

घर हमने जलते देखा है,

पेट पालने की खातिर,

कोई पेट मैं पलते देखा है,


नीतीश कुमार

Mob.- 9534711912

Saturday, January 1, 2011



हुनर के धनि कलाकार को है मंच की तलाश

जिन्दगी एक अभिलाषा है, क्या गजब इसकी परिभाषा है.
संवर गई तो दुल्हन और बिखर गई तो तमाशा है.

प्रसिद्ध कवि दुष्यंत की ये पंक्तियाँ हर किसी की जिन्दगी पर बिलकुल सटिक बैठता है. कहते है जब किसी इंसान में हुनर हो तो मंजिल खुद उसका कदम चूमती है. पर हमारे बीच एक ऐसे व्यक्ति भी है जिनमे हुनर तो कूट-कूट कर भरा हुआ है पर अपनी पहचान बनाने के लिए वो दर दर भटक रहा है. ये है नवादा जिले के रामनगर निवासी विकास विश्वकर्मा जो महज 20 साल की उम्र में बिना कोई प्रशिक्षण लिए हर योगाभ्यास कर लेता है.
बाबा रामदेव को अपना आदर्श मानने वाला विकास हर व्यक्ति तक योग शिक्षा पहुचना चाहता है. गौरतलब हो की योग के प्रति रुझान के कारन वह शरीर को रबड़ की तरह मोड़ लेता है. इतना ही नहीं वह अपने ज्ञानेन्द्रियों को भी वश में कर लेता है जिससे शारीर को कुर्सीनुमा बनाकर बिना टेबुल के सहारे ही भोजन कर सकता है. ज्ञानेन्द्रियों पर वश ऐसा की वह अपने बाल को आगे पीछे, पेट को फुटबाल नुमा और कान को जिस तरह चाहे घुमा सकता है. हाथ पीछे कर के भोजन करना और लोगों को पीछे से प्रणाम करके वह सभी को आश्चर्य में डाल देता है. कला का धनि विकास अनेक कलाकार की आवाज़ भी निकालता है. विकास की आवाज़ में मिथुन, अजीत, जगदीप, सत्रुघ्न सिन्हा, एहशान कुरैशी के आलावा विविध भारती के प्रसिद्ध एनाउंसर अमीन शयानी भी शामिल है.
इतना हुनर होते हुए के वावजूद भी विकास को तलाश है एक ऐसे मंच की जो उसे पहचान दिला सके. अपने मार्ग में वह गरीबी को सबसे बड़ा रोड़ा मानता है. विकाश कहता है की ये सब कलाबाजियां उसमे ईश्वरीय देन है, लेकिन प्रशिक्षण की अभाव में उसे इन कलाओं की बारीकियों और इससे होने वाले लाभ के बारे में उसे नहीं पता है.
विकास के पिता वासुदेव विश्वकर्मा जो पेशे से ड्राईवर है बताते है की विकास को बचपन से ही योग के प्रति गहरा रुझान रहा है पर आर्थिक स्थिति दयनीय रहने के कारन ही उसका विकाश बाधित है. उन्होंने जिला प्रशासन से उमीद जताते हुए सहयोग की मांग भी की थी पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ. वो चाहते है की विकास अपने प्रदेश और राज्य का नाम रौशन करे जिसके लिए वो कला एवं सांस्कृतिक विभाग से सहयोग की उमीद जताते है.विलक्षण कलात्मक प्रतिभा का धनि विकास की उड़ान ऊँची हो सकती है, बशर्ते आर्थिक संसाधनों की कमी दूर हो.

नितीश कुमार
इन्द्रपुरी, पटना

Mob.- 9534711912