Thursday, January 6, 2011


पापी पेट के खातिर


चिराग जलाने की कोशिश,

घर हमने जलते देखा है,

पेट पालने की खातिर,

कोई पेट मैं पलते देखा है,


भूखी माँए रोते बच्चे,

तन नंगा और मन नंगा,

एक दिन के चावल को ही,

हो जाता है बदन नंगा,

इस युग मैं हर मोड़ पे हमने,

सीता को हरते देखा है,


खुश दिख कर यहाँ करने पड़ते,

बदन के सौदे रातों मैं,

बदन के लालची भेडिये,

रहते सदा ही घातों मैं,

यहाँ द्रोपदी को चीर हरण,

खुद अपना करते देखा है,


सोने वाले सो नही पते,

रात यहाँ सो जाती है,

जग की जन्म देनी माँ,

खुद गर्त मैं खो जाती है,

पेट की खातिर खुद ही हमने,


खुद को छलते देखा है,

चिराग जलाने की कोशिश,

घर हमने जलते देखा है,

पेट पालने की खातिर,

कोई पेट मैं पलते देखा है,


नीतीश कुमार

Mob.- 9534711912

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