Sunday, September 26, 2010


माँ की याद
बचपन की यादें वक्त के फंदे पर कभी झूलती नहीं
माँ की बातें और लोरियां मुझे कभी भूलती नहीं
तसवीरें देखता हूँ जो दीवारों पर कब से लटकी हैं
माँ संग बैठी है ये देख आँखें टपकी हैं
बेकार की बात नहीं मैं सच कह रहा हूँ
माँ की यादों के संग मैं बह रहा हूँ
माँ को गले लगाये हुए एक और तस्वीर हैं
माँ सब तसवीरें ही तो मेरी जागीर है
कभी नहीं खाली हो सकता खामोशी का संमंदर
मुझे विरासत में मिला था सुहाना सा मंजर
हाथ पकड़ा हुआ था माँ ने मेरा तब भी
हाथ पकड़ा हुआ है माँ ने मेरा अब भी
चार दीवारें हैं उस पर डाली हुयी छत है
माँ का ये कमरा उसका जीवन रुपी रथ है
सदा दी है दुआ, बेटा हमेशा आगे बढ़ना
माँ तुम्हें कभी रुलाया हो तो मुझे माफ़ करना।

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