Wednesday, January 23, 2013

क्या जरुरत नेताओं के बहस की

लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए जरूरी है कि किसी मुद्दे पर गंभीर बहस की जाए। लेकिन, संसद में पहुंचने वाले लोगों के भीतर बहस की प्रवृत्ति कम होती जा रही है। अब यहां जल्दबाजी में विधेयक पारित किए जाने लगे हैं।लोकतंत्र में संसदीय बहस की परंपरा को मजबूत करने के लिए काम करने वाली संस्था ‘पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च’ के अध्ययन के अनुसार 14वीं लोकसभा के अंतिम दिन 17 मिनट के भीतर आठ विधेयक पारित किए गए। इससे पता चलता है कि विधेयक के पारित होने से पहले उसपर कितनी गंभीर बहस हुई होगी।
अध्ययन में इस बात का जिक्र है कि वर्ष 2008 के दौरान संसद ने वित्त व विनियोग से संबंधित 32 विधेयक पारित किए। इनमें से कई विधेयक बिना बहस के पारित हुए। अध्ययन के मुताबिक 28 प्रतिशत विधेयक 20 मिनट से कम बहस के बाद पारित किए गए, जबकि 19 प्रतिशत विधेयक पर एक घंटे से कम समय तक बहस किया गया।
इस संबंध में विपक्षी सांसदों का कहना है कि सरकार ने जल्दबाजी में काम किया।
कई नेता मानते हैं कि चर्चा के बिना किसी विधेयक का पारित होना ठीक परंपरा की निशानी नहीं है। लेकिन, अधिकत्तर मामलों में विधेयक पारित कराने के लिए सरकार जल्दबाजी में रहती है।

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