Sunday, October 3, 2010


इंसान की बेरुखी से संकट में हैं गजराज


वर्षों पहले हाथी मेरे साथी नामक एक फिल्म काफी पॉपुलर हुई थी। इसमें आदमी और हाथी की दोस्ती की कहानी कही गई थी। लेकिन

लगता है इंसान ने अपने इस दोस्त से मुंह फेर लिया है। हाथी भी अन्य कई जानवरों की तरह विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके हैं। भारत की सांस्कृतिक विरासत के एक प्रतीक हाथियों की संख्या देश में महज 26 हजार ही रह गई है। जानवरों में सबसे ज्यादा दिमाग वाले इस विशालकाय पशु के लिए ट्रेनें काल बनी हुई हैं। पिछले हफ्ते पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में एक ट्रेन की टक्कर से 7 हाथियों की मौत हो गई थी। पिछले 5 सालों में ट्रेन हादसों में हम 60 हाथियों को खो चुके हैं। असम, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड में ऐसे हादसे ज्यादा हुए हैं।


पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित ऐलिफैंट टास्क फोर्स ने हाथियों को बचाने के लिए हाथी बहुल इलाकों में ट्रेन स्पीड कम करने, पानी के स्त्रोतों को बढ़ाने जैसे महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं. इतना ही नहीं- ट्रेन की स्पीड 40 की. मी./घंटा रखे, इस पर भी बहुतेड़ों बार हिदायत दिए गये है. , पर रिजल्ट फिर भी दुखद मिलता है. मै पूछता हूँ की कोई ठोस करवाई या फिर इसके खिलाफ कदम क्यों नहीं उठाये जाते. ट्रेन की स्पीड कम क्यों नहीं होती. रेलवे के लिए ये नियम हो या सुझाव पर इनकी स्पीड कम क्यों नहीं होती. क्या ये पर्यावरण के अंग नहीं है? इतना ही नहीं औधोगीकरण के नाम पर बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई हो रही है. इस से तो जानवरों का जीना भी मुहाल हो गया है. पर ये सुझाव अमल कैसे हो ? इस पर सोचने का वक़्त आ गया है. सिर्फ नियम बनाने से इन की रक्षा नहीं हो सकती ! हम इंसान को जानवरों के प्रति अपना नजरिया अपने परिवार के सदस्य की तरह रखना होगा. क्योकि ये जानवर भी तो इस प्रकृति के प्रमुख अंग है.


मानव जनसंख्या के बढ़ते दबाव ने हाथियों का संकट बढ़ाया है। जंगल कट रहे हैं और हाथियों के प्राकृतिक आवास कम हो रहे हैं। बेशकीमती दांत के चक्कर में भी ये मारे जा रहे हैं। अगर ऐसे ही हालात रहे तो सेव टाइगर मुहिम की तरह हाथियों को बचाने के लिए सेव ऐलिफेंट अभियान चलाए जाने की जरूरत पड़ेगी। हाथी के बगैर भारतीय जनजीवन अधूरा लगेगा। कितने ही त्योहार फीके पड़ जाएंगे। अगर हाथी इसी तरह विलुप्त होते रहे तो आने वाली पीढ़ियों को 'हाथी के दांत दिखाने के और, खाने के और', 'हाथी के पांव में सबका पांव' और 'हाथी पालना' जैसी कहावतों का अर्थ ही नहीं समझ में आएगा। क्या हम अपने इस साथी को भुला देंगे? ?


नीतीश कुमार

इन्द्रपुरी, पटना

Mob.- 9534711912, 9308278467

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